दशहरी आम के मातृ वृक्ष का इतिहास


#लखनऊ के #काकोरी के समीप 'दशहरी' गावँ में लगा हुआ  300 साल पुराना और ऐतिहासिक #दशहरी_आम का ये वृक्ष पूरी दुनिया मे फैल चुकी आम की सभी दशहरी प्रजातियों का #मातृ_वृक्ष कहलाता है।गांव के नाम पर ही इस प्रजाति का नाम दशहरी रखा गया है।

इस पेड़ को यहां किसने लगाया ,ये तो ठीक से ज्ञात नहीं है, लेकिन आज से तीन सौ साल पहले #मलिहाबाद के #नवाब_शमशेर_अली_खान को सबसे पहले आमों के बाग लगाने के लिए याद किया जाता हैं। आमों की प्रजातियों में नवाब शमशेर अली खान की दिलचस्पी इतनी बढ़ती गई, की एक बार उन्होंने बर्मा देश से आम की कुछ स्वादिष्ट प्रजातियां लाने के लिए अपने खास लोगों को बर्मा भेजा, जो एक महीने के बाद आम की कुछ गमलों में लगी प्रजातियां लेकर लखनऊ वापस आये।

शमशेर अली खान साहब पहले व्यक्ति थे जिन्होंने आमों के विकास के लिए इस क्षेत्र में ग्राफ्टिंग तकनीकी विकसित की, और सम्मानपूर्वक खान साहब को  मलीहाबादी दशहरी आमों का '#जनक' माना जाता हैं।

इस मातृवृक्ष की मजबूत और विस्तृत शाखाओं को देख कर लगता है, की ये निरंतर वृद्धि और विकास कर रहा है। कुछ समय तक इस वृक्ष की रक्षा हेतु पुलिसकर्मियों को लगाया गया, क्यों  की ईर्ष्यावश कई बार इसको नष्ट करने के भी प्रयास हुए थे।हर सीजन में इस पर फल आते हैं, और कौतूहल वश लोग इसे देखने आते रहते हैं।
आम भारत के प्राचीनतम फलों में से एक है, और विगत पांच हज़ार वर्षों से भारत मे इसके होने के प्रमाण मौजूद है।
महाकवि कालिदास से लेकर गुरुदेव टैगोर, सिकंदर से लेकर अकबर और खुसरो से लेकर ग़ालिब तक ,सभी ने इस फल की प्रशंसा में काफी कुछ कहा है।
कालांतर में मलिहाबाद के नवाब फ़क़ीर मोहम्मद खान और नवाब अब्दुल हमीद कंधारी ने इस क्षेत्र में आमों के बागानो के विकास ,एवं ग्राफ्टिंग द्वारा उन्नतशील और बेहतरीन प्रजातियों के विकास हेतु सराहनीय कार्य किया। आज मलिहाबाद विश्व मे आमों के लिए अपनी पहचान बना चुका है।

आमों के बारे  में ये भी याद रखें कि ये भारत या बर्मा क्षेत्र में प्राकृतिक रूप से विकसित एक स्थानीय प्रजाति है। आज से मात्र 50 साल पहले तक देश मे आम की हज़ारों देसी प्रजातियां पाई जाती थीं। लेकिन वर्तमान में उन्नत और स्वादिष्ट नस्लों जैसे, दशहरी, लंगरा, चौसा, सफेदा, बम्बई, अल्फांसो, हापूस जैसी कुछ प्रजातियों की मांग ने आमों की देसी प्रजातियों के अस्तित्व पर संकट खड़ा कर दिया है। आज के समय मे प्रचलित प्रजातियाँ इन्हीं देसी प्रजातियों के अनुवांशिक परिवर्तन द्वारा उत्पन्न की गई है। इसलिए जलवायु परिवर्तन के बढ़ते खतरों के बीच आमों की विलुप्त होती देसी प्रजातियों का संरक्षण भी अत्यंत आवश्यक है। अन्यथा किसी बड़े पर्यावरणीय बदलाव में हम स्वादिष्ट आमों को हमेशा के लिए खो देंगे।

सोशल मीडिया के सौजन्य से

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