आश्यकता ही आविष्कार की जननी है,एक बार फिर प्रमाणित।

यह तस्वीर है कर्नाटक के छोटे से गाँव कडइकुडी (मैसूर) के एक गरीब किसान परिवार में पैदा हुये प्रताप की।



इस 21 वर्षीय वैज्ञानिक ने फ्रांस से प्रतिमाह 16 लाख की तनख्वाह, 5 BHK फ्लैट और 2.5 करोड़ की कार का ऑफर ठुकरा दिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इन्हें DRDO में नियुक्त किया है।

प्रताप एक गरीब किसान परिवार से हैं, बचपन से ही इन्हें इलेक्ट्रॉनिक्स में काफी दिलचस्पी थी। 12वीं क्लास में जाते-जाते पास के सायबर कैफे में जाकर इन्होंने अंतरिक्ष, विमानों के बारे में काफी जानकारी इकठ्ठा कर ली।

दुनियाँ भर के वैज्ञानिकों को अपनी टूटी-फूटी अंग्रेजी में मेल भेजते रहते थे कि मैं आपसे सीखना चाहता हूँ। पर कोई जवाब सामने से नहीं आता। इंजीनियरिंग करना चाहते थे, लेकिन पैसे नहीं थे।

इसलिये B.Sc. में एडमिशन ले लिया, पर उसे भी पैसों की वजह से पूरा नहीं कर पाये। 

पैसे न भर पाने की वजह से इन्हें होस्टल से बाहर निकाल दिया गया। सरकारी बस स्टैंड पर रहने सोने लगे, कपड़े वहीं के पब्लिक टॉयलेट में धोते रहे। इंटरनेट की मदद से कम्प्यूटर लैंग्वेजेस जैसे C, C++, java, Python सब सीखा।
 
इलेक्ट्रोनिक्स कचरे से ड्रोन बनाना सीख लिया। 

भारत कुमार लिखते हैं कि 80 बार असफल होने के बाद आखिरकार वह ड्रोन बनाने में सफल रहे ... उस ड्रोन को लेकर वह IIT Delhi में हो रहे एक प्रतिस्पर्धा में चले गये... और वहाँ जाकर "द्वितीय पुरस्कार" प्राप्त किया... वहाँ उन्हें किसी ने जापान में होने वाले ड्रोन कॉम्पटीशन में भाग लेने को कहा...

उसके लिये उन्हें अपने प्रोजेक्ट को चेन्नई के एक प्रोफसेर से अप्रूव करवाना आवश्यक था... दिल्ली से वह पहली बार चेन्नई चले गये... काफी मुश्किल से अप्रूवल मिल गया... जापान जाने के लिये 60,000 रुपयों की जरूरत थी... एक मैसूर के ही भले इंसान ने उनकी मदद की ...प्रताप ने अपनी माता जी का मंगलसूत्र बेच दिया और जापान चले गये।...

जब जापान पहुंचे तो सिर्फ 1400 रुपये बचे थे।... इसलिये जिस स्थान तक उन्हें जाना था उसके लिये बुलेट ट्रेन ना लेकर सादी ट्रेन पकड़ी।... 16 स्टॉप पर ट्रेन बदली... उसके बाद 8 किलोमीटर पैदल चलकर हॉल तक पहुंचे।...

प्रतिस्पर्घा स्थल पर 127 देशों से लोग भाग लेने आये हुये थे।... बड़ी-बड़ी युनिवर्सिटी के बच्चे भाग ले रहे थे।... नतीजे घोषित हुये।... ग्रेड अनुसार नतीजे बताये जा रहे थे।... प्रताप का नाम किसी ग्रेड में नहीं आया।...

वह निराश हो गये।

अंत में टॉप टेन की घोषणा होने लगी। प्रताप वहाँ से जाने की तैयारी कर रहे थे।

10वें नंबर के विजेता की घोषणा हुई ...

9वें नंबर की हुई ...

8वें नंबर की हुई ...

7..6..5..4..3..2 और पहला पुरस्कार मिला हमारे भारत के प्रताप को।

अमेरिकी झंडा जो सदैव वहाँ ऊपर रहता था वह थोड़ा नीचे आया, और सबसे ऊपर तिरंगा लहराने लगा।

प्रताप की आँखें आँसू से भर गयीं। वह रोने लगे।

उन्हें 10 हजार डॉलर (सात लाख से ज्यादा) का पुरस्कार मिला।

तुरंत बाद फ्रांस ने इन्हें जॉब ऑफर की।

मोदी जी की जानकारी में प्रताप की यह उपलब्धि आयी।... उन्होंने प्रताप को मिलने बुलाया तथा पुरस्कृत किया।... उनके राज्य में भी सम्मानित किया गया। 600 से ज्यादा ड्रोन्स बना चुके हैं।

मोदी जी ने DRDO से बात करके प्रताप को DRDO में नियुक्ति दिलवाई। आज प्रताप DRDO के एक वैज्ञानिक हैं।

इसलिये हीरो वह है, जो जीरो से निकला हो। प्रताप जैसे लोगों को प्रेरणा का श्रोत आज के विद्यार्थियों को बनाना चाहिये, ना कि टिकटॉक जैसे किसी एप्प पर काल्पनिक दुनियाँ में जीने वाले किसी रंग-बिरंगे बाल वाले जोकर को।

अभिषेक गौतम की कलम से।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

46 लाख रुपए की लागत से पथ निर्माण का कार्य शुभारंभ

सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या पर सोशल मीडिया में मचा हड़कम्प, फैंस कर रहे न्याय की मांग।

लोगों का निःशुल्क इलाज करने वाले बीएचयू के जाने-माने कार्डियोथोरेसिक सर्जन पद्म श्री डॉ. टी.के. लहरी (डॉ तपन कुमार लहरी)